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मध्य प्रदेश के प्रमुख लोकनृत्य


1) करमा नृत्य : मध्य प्रदेश के गोंड और बैगा आदिवासियों का प्रमुख नृत्य है | जो मंडला के आसपास क्षेत्रों में किया जाता है | करमा नृत्य गीत कर्म देवता को प्रशन्न करने के लिए किया जाता है | यह नृत्य कर्म का प्रतीक है | जो आदिवासी व लोकजीवन की कर्म मूलक गतिविधियों को दर्शाता है | यह नृत्य विजयदशमी से प्रारंभ होकर वर्षा के प्रारंभ तक चलता है |
ऐसा माना जाता है की करमा नृत्य कर्मराजा और कर्मरानी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है इसमें प्रायः आठ पुरुष व आठ महिलाएं नृत्य करती है | ये गोलार्ध बनाकर आमने सामने खड़े होकर नृत्य करते है | एक दल गीत उठता है और दूसरा दल दोहराता है | वाध्य यन्त्र मादल का प्रयोग किया जाता है नृत्य में युवक युवती आगे पीछे चलने में एक दुसरे के अंगुठे को छूने की कोशिश करते है |
बैगा आदिवासियों के करमा को बैगानी करमा कहा जाता है ताल और लय के अंतर से यह चार प्रकार का होता है | 1) करमा खरी 2) करमा खाय 3) करमा झुलनी ४) करमा लहकी |
संक्षेप में करमा नृत्य की विशेषताएं :
·        यह नृत्य कर्म को महत्त्व देने वाला है |
·        यह गौंड, बैगा जनजाति के कृषकों द्वारा किया जाता है |
·        यह नृत्य गीत, लय, ताल के साथ पद सञ्चालन पर आधारित है |
·        करमा नृत्य जीवन की व्यापक गतिविधियों से सम्बंधित है |
·        यह नृत्य दशहरे से वर्षाकाल के आरम्भ अर्थात अक्टूबर से जून तक चलता है |


2) राई नृत्य : मध्य प्रदेश के प्रमुख लोकनृत्य राई को इसके क्षेत्र के आधार पर दो भागों में बांटा जा सकता है | बुंदेलखंड का राई नृत्य और बघेलखंड का राई नृत्य |
बुंदेलखंड का राई नृत्य : राई नृत्य बुंदेलखंड का एक लोकप्रिय नृत्य है यह नृत्य उत्सवों जैसे विवाह, पुत्रजन्म आदि के अवसर पर किया जाता है |  अशोकनगर जिले के करीला मेले में राई नृत्य का आयोजन सामूहिक रूप से किया जाता है | यहाँ पर लोग अपनी मन्नत पूर्ण होने पर देवी के मंदिर के समक्ष लगे मेले में राई नृत्य कराते है | यह राई का धार्मिक स्वरुप है | राई नृत्य के केंद्र में एक नर्तकी होती है जिसे स्थानीय बोली में बेडनी कहा जाता है | नृत्य को गति देने का कार्य एक मृदंगवादक पुरुष द्वारा  किया जाता है | राई नृत्य के विश्राम की स्थिति में स्वांग नामक लोकनाट्य भी किया जाता है जो हंसी मजाक व गुदगुदाने का कार्य करता है | विश्राम के उपरांत पुनः राई नृत्य प्रारंभ किया जाता है | अन्य लोकनृत्यों में जो बात प्रायः नहीं पाई जाती है वह है राई में पाई जाने वाली तीव्र गति, तत्कालीन काव्य रचना और अद्वितीय लोक संगीत | संगीत में श्रृंगार व यौवन झलकता है |
बघेलखंड का राई नृत्य : बुंदेलखंड की तरह बघेलखं में भी राई नृत्य किया जाता है परन्तु यहाँ पर नृत्य में कुछ विभेद आ जाते है जैसे बुंदेलखंड में राई नृत्य बेडनी द्वारा किया जाता है वहीँ बघेलखंड में पुरुष ही स्त्री वेश धारण कर राई नृत्य प्रस्तुत करते है इसके अतिरिक्त बुन्देलखंड में वाद्ययंत्र के तौर पर मृदंग का प्रयोग किया जाता है वहीँ बघेलखंड में ढोलक व नगड़िया का उपयोग किया जाता है | बघेलखंड में राई नृत्य विशेष रूप से अहीर पुरुषों द्वारा किया जाता है परन्तु कहीं कहीं पर ब्राम्हण स्त्रीयों में भी इसका प्रचलन पाया जाता है | पुत्र जन्म पर प्रायः वैश्य महाजनों के यहाँ पर भी राई नृत्य का आयोजन किया जाता है | स्त्रियाँ हाथों, पैरों और कमर की विशेष मुद्राओं में नृत्य करती है | राई नृत्य के गीत श्रृंगार परक होते है | स्त्री नर्तकियों की वेश-भूषा व गहने परंपरागत होते है | पुरुष धोती, बाना , साफा, और पैरों  में घुंघरू बांधकर नाचते है | 


3) बधाई नृत्य :  बुंदेलखंड क्षेत्र में जन्म, विवाह और त्योहारों के अवसरों पर बधाईं' लोकप्रिय है। इसमें संगीत वाद्ययंत्र की धुनों पर पुरुष और महिलाएं सभी, ज़ोर-शोर से नृत्य करते हैं। नर्तकों की कोमल और कलाबाज़ हरकतें और उनके रंगीन पोशाक दर्शकों को चकित कर देते है।

4) भगोरिया नृत्य : भगोरिया नृत्य अपनी विलक्षण लय और डांडरियां नृत्य के माध्यम से मध्यप्रदेश की बैगा आदिवासी जनजाति की सांस्कृतिक पहचान बन गया है। बैगा के पारंपरिक लोक गीतों और नृत्य के साथ दशहरा त्योहार की उल्लासभरी शुरुआत होती है। दशहरा त्योहार के अवसर पर बैगा समुदाय के विवाहयोग्य पुरुष एक गांव से दूसरे गांव जाते हैं, जहां दूसरे गांव की युवा लड़कियां अपने गायन और डांडरीयां नृत्य के साथ उनका परंपरागत तरीके से स्वागत करती है। यह एक दिलचस्प रिवाज है, जिससे बैगा लड़की अपनी पसंद के युवा पुरुष का चयन कर उससे शादी की अनुमति देती है। इसमें शामिल गीत और नृत्य, इस रिवाज द्वारा प्रेरित होते हैं। माहौल खिल उठता है और सारी परेशानियों से दूर, अपने ही ताल में बह जाता है।